राजस्थान की मिट्टियाँ
By:-A.K.Sihag
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रेतीली / बलुई मिट्टी :-
राजस्थान के सबसे अधिक शेत्र (पश्चमी राजस्थान ) में इस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है
कच्छारी/जलोड/दुमट /कॉप मिट्टी :-
यह सबसे उपजाऊ मिट्टी है अलवर, भरतपुर ,धोलपुर, दौसा, जयपुर ,गंगानगर टोंक, तथा हनुमानगड जिलो में पाई जाती है
चाही :-
चम्बल के बीहड़ शेत्रो में कछारी मिट्टी का जमाव है जिसमे राजस्व की द्र्स्टी से भूमि का दो भागो में विभाजन है| सिंचित भाग ‘चाही’ कहलाता है
काली/रेगर मिट्टी :-
कोटा बूंदी तथा झालावाड जिलो के पठारी शेत्रो में पाई जाती है | इसमें सिंचाई द्वारा कपास की खेती की जाती है |
भूरी मिट्टी :-
अरावली के पूर्वी भाग में बनास व उसकी सहायक नदियाँ के शेत्रोमें पाई जाती है |
सिरोजम मिट्टी :-
अरावली के पश्चिम में रेत के छोटे टीलो भाग में पाई जाने वाले भाग में पाई जाने के कारण यह धुषर मरुस्थलीय मिट्टी कहलाती है |
लवणीय मिट्टी :-
यह गंगानगर, बीकानेर ,हनुमानगड ,बाड़मेर एवम जालौर जिले में पाई जाती है |
पर्वतीय मिट्टी :-
अजमेर अलवर सिरोही उदयपुर पाली के पहाड़ी भागो में पाई जाने वाली इस मिट्टी की गहराई बहुत कमहोती है | इसमें केवल जंगल ही लगाये जा शकते है |
लवणीय / क्षारीयता की समस्या :-
पश्चमी राजस्थान में क्लोराइड आदि लवण मिट्टी की उपरी सतह पर इक्कठे हो जाते है | इस मिट्टी को उषर , नमकीन /रेह भी कहते है |
मिट्टी में खारापन या शारियता की समस्या के समाधान हेतु जिप्सम का प्रयोग किया जाता है |
बीहड़ भूमि :-
इसका सर्वाधिक विस्तार सवाईमाधोपुर एवम करौली जिले में है|
मृदा अपरदन :-
राज्य में सर्वाधिक प्रभावित भूमि वायु अपरदन एवम उसके बाद जल अपरदन से है |
अवनालिका अपरदन / कन्दरा समस्या :-
भारी वर्षा के कारण जल द्वारा मिट्टी का कटाव जिससे गहरी घाटी तथा नाले बन जाते है | इस समस्या के कोटा (सर्वाधिक ) बूंदी , धोलपुर , भरतपुर ,जयपुर तथा सवाईमाधोपुर जिले ग्रस्त है |
चम्बल :- मिट्टी का सर्वाधिक अवनालिका अपरदन इस नदी में होता है|
परतदार अपरदन :-
वाऊ द्वारा मृदा की उपरी परत का उड़ाकर ले जाना |
काली/रेगर मिट्टी :-
कोटा बूंदी तथा झालावाड जिलो के पठारी शेत्रो में पाई जाती है | इसमें सिंचाई द्वारा कपास की खेती की जाती है |
भूरी मिट्टी :-
अरावली के पूर्वी भाग में बनास व उसकी सहायक नदियाँ के शेत्रोमें पाई जाती है |
सिरोजम मिट्टी :-
अरावली के पश्चिम में रेत के छोटे टीलो भाग में पाई जाने वाले भाग में पाई जाने के कारण यह धुषर मरुस्थलीय मिट्टी कहलाती है |
लवणीय मिट्टी :-
यह गंगानगर, बीकानेर ,हनुमानगड ,बाड़मेर एवम जालौर जिले में पाई जाती है |
पर्वतीय मिट्टी :-
अजमेर अलवर सिरोही उदयपुर पाली के पहाड़ी भागो में पाई जाने वाली इस मिट्टी की गहराई बहुत कमहोती है | इसमें केवल जंगल ही लगाये जा शकते है |
लवणीय / क्षारीयता की समस्या :-
पश्चमी राजस्थान में क्लोराइड आदि लवण मिट्टी की उपरी सतह पर इक्कठे हो जाते है | इस मिट्टी को उषर , नमकीन /रेह भी कहते है |
मिट्टी में खारापन या शारियता की समस्या के समाधान हेतु जिप्सम का प्रयोग किया जाता है |
बीहड़ भूमि :-
इसका सर्वाधिक विस्तार सवाईमाधोपुर एवम करौली जिले में है|
मृदा अपरदन :-
राज्य में सर्वाधिक प्रभावित भूमि वायु अपरदन एवम उसके बाद जल अपरदन से है |
अवनालिका अपरदन / कन्दरा समस्या :-
भारी वर्षा के कारण जल द्वारा मिट्टी का कटाव जिससे गहरी घाटी तथा नाले बन जाते है | इस समस्या के कोटा (सर्वाधिक ) बूंदी , धोलपुर , भरतपुर ,जयपुर तथा सवाईमाधोपुर जिले ग्रस्त है |
चम्बल :- मिट्टी का सर्वाधिक अवनालिका अपरदन इस नदी में होता है|
परतदार अपरदन :-
वाऊ द्वारा मृदा की उपरी परत का उड़ाकर ले जाना |
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